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उद्धरेदात्मनात्मानं नात्मानमवसादयेत | आत्मैव ह्यात्मनो बन्धुरात्मैव रिपुरात्मन : ||

उद्धरेदात्मनात्मानं   नात्मानमवसादयेत |  आत्मैव ह्यात्मनो बन्धुरात्मैव  रिपुरात्मन :  ||  अपने द्वारा अपना उद्धार करें , अपना पतन न करें क्योंकि आप ही अपना मित्र हैं  और आप ही अपना शत्रु हैं ।  व्याख्या :गुरु बनना या बनाना गीता का सिद्धांत नहीं है। वास्तव में मनुष्य आप ही अपना गुरु है। इसलिए अपने को ही उपदेश दे अर्थात  दूसरे में कमी न देखकर अपने में ही कमी देखे और उसे मिटाने की चेष्टा करे। भगवान् भी विद्यमान हैं ,तत्व ज्ञान भी विद्यमान है और हम भी विद्यमान हैं ,फिर उद्धार में देरी क्यों ? नाशवान व्यक्ति ,पदार्थ और क्रिया में आसक्ति के कारण ही उद्धार में देरी हो रही है। इसे मिटाने की जिम्मेवारी हम पर ही  है ; क्योंकि हमने ही  आसक्ति की है।  पूर्वपक्ष: गुरु ,संत और  भगवान् भी तो मनुष्य का उद्धार करते हैं ,ऐसा लोक में देखा जाता है ? उत्तरपक्ष : गुरु ,संत और भगवान् भी मनुष्य का तभी उद्धार करते हैं ,जब वह (मनुष्य )स्वयं उन्हें स्वीकार करता है अर्थात उनपर श्रद्धा -विश्वास करता है ,उनके सम्मुख होता ...

विद्या विनय सम्पन्ने ब्राह्मणे गवि हस्तिनी | शुनि चैव श्वपाके च पंडिता : समदर्शिन :||

 विद्या विनय सम्पन्ने  ब्राह्मणे गवि हस्तिनी |  शुनि चैव  श्वपाके च पंडिता :  समदर्शिन :||  ज्ञानी महापुरुष विद्याविनययुक्त ब्राह्मण में और चांडाल तथा गाय , हाथी एवं कुत्ते में भी समरूप परमात्मा को देखने वाले होते हैं।  व्याख्या : बेसमझ लोगों द्वारा यह श्लोक प्राय :  सम व्यवहार के रूप में प्रस्तुत किया जाता है। परन्तु श्लोक में 'समवर्तिन  :' न कहकर 'समदर्शिन  :' कहा गया है जिसका अर्थ है -समदृष्टि न कि सम -व्यवहार। यदि स्थूल दृष्टि से भी देखें तो ब्राह्मण ,हाथी ,गाय और कुत्ते के प्रति समव्यवहार असंभव है। इनमें विषमता अनिवार्य है। जैसे पूजन तो विद्या -विनय युक्त ब्राह्मण का ही हो सकता है ,न कि चाण्डाल का ; दूध गाय का ही पीया जाता है न कि कुतिया का ,सवारी हाथी पर ही की  जा सकती है न कि कुत्ते पर।  जैसे शरीर के प्रत्येक अंग के व्यव्हार में विषमता अनिवार्य है ,पर सुख दुःख में समता होती है,अर्थात शरीर के किसी भी अंग का सुख  हमारा सुख होता है और दुःख हमारा दुःख। हमें किसी भी अंग की पीड़ा सह्य नहीं होती। ऐसे ही प्राणि...

लातों के भूत बातों से नहीं मानते चाहे फिर वे अंदर से देश को तोड़ने वाले हों या बाहर से

लातों  के भूत बातों से नहीं मानते चाहे फिर वे अंदर से देश को तोड़ने वाले हों  या  बाहर से। मणिशंकर सोच और प्रजाति  के पढ़े लिखे गंवार इतना भी नहीं जानते। ये मूढ़मति स्मृति भ्रंश भूल गए बाजपेयीजी की  सदाशयता ,लाहौर बस यात्रा ,आगरा संवाद और कारगिल। ये टुकड़खोर स्वनामधन्य आईएएस खाता इस देश का है ढपली  पाकिस्तान  की बजाता है। ये साहित्य उत्सव  करांची का इस्तेमाल भारत निंदा के लिए करते हुए ज़रा भी नहीं लजाते ,सिद्ध होता है ये पक्के कांग्रेसी सोनिया शुक हैं। पाक भगत सिंह और वीरसावरकर को हमारी  सांझी विरासत बतलाता है। यह नालायक उनकी प्रतिमा पोर्ट ब्लेयर से  हटवा देता है। बुद्धि का दुरपयोग ख़बरों में बने रहने लिए कैसे किया जाता है ये कोई सोनिया स्वजनों ,सोनिया -स्वानों से सीखे। ताज्जुब ये है  ये दुर्मुख  कलमखोर अंग्रेजी के रिसालों में भुगतान लेख (Paid features )छपवाता है।