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चार उचक्के चालीस चोर :डॉ वागीश मेहता ,प्रमुख ,भारत धर्मी समाज

आज संसद को जिस तरह ठप्प किया जा रहा है उससे सारा देश विक्षुब्ध है। भारत धर्मी समाज का मन उद्वेलित है। केवल चंद जेहादी तत्व खुश हैं। कौन करवा रहा है संसद ठप्प पूरा देश जानता है। व्यथित मन की संवेदना फूटी है कविता बनकर डॉ वागीश मेहता ,प्रमुख ,भारत धर्मी समाज के मुखारविंद से :

चार उचक्के चालीस चोर 

        (१)

संसद ठप्प करने का काम ,

कैसा आसन कौन प्रधान ,

चार उचक्के चालीस चोर ,

ढप ढप करते फटे हैं ढोल ,

किसी और की बात न सुनते ,

शोर - शोर बस केवल शोर .

            (२)

खड़खड़ करता दुःशासन है ,

बेबस द्रुपद -सुता संसद है ,

एक इंच भी नहीं हटूंगा ,

दुर्योधन का अड़ियलपन है ,

गांधारी मुस्काती मन -मन ,

धृतराष्ट्र भी खूब मगन है।

         (३)

शोर शराबे  की मस्ती है ,

तर्क नियम की क्या हस्ती है ,

पंद्रह मिनिट मैं बोल पड़ा तो ,

संसद की तो क्या गिनती है ,

मन मारे अब विदुर मौन हैं ,

मौन पितामह द्रोण मौन हैं ,

शकुनि ने फेंके हैं पासे ,

सबकी अटक गईं हैं साँसें।

         (४ )

न्यायपीठ पर चोट करन्ते  ,

लोकलाज और शील के हंते ,

राष्ट्र समूचा स्तब्ध -मना है ,

एक आस विश्वास घना है ,

कभी सुदर्शन चक्र चलेगा ,

फिर शान्ति का कमल खिलेगा।

प्रस्तुति :वीरुभाई (वीरेंद्र शर्मा ,एचईएस -वन ,सेवा निवृत्त )

                         

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