श्रवण मंगलम ,ज्ञान मंगलम ,दृश्य मंगलम दीदार मंगलम(IT IS HARD TO LISTEN WHEN YOU CAN'T HEAR (HINDI II )
बीस साल से कम उम्र के ज्यादातर लोग श्रव्य -सीमा की अधिकतम आवृत्ति वाली बीस हज़ार साइकिल प्रतिसेकिंड की ध्वनि सुन लेते हैं। लेकिन उम्र के साथ श्रवण ह्रास, श्रवण क्षय का कारण श्रवण (कान )की प्रत्यास्थता इलास्टिसिटी का क्षय होना है ,उम्रदराज़ होते जाने की एक स्वाभाविक प्रक्रिया का अंग है ,तो भी पचास साला लोग १२,००० साइकिल प्रतिसेकिंड से ऊपर तक की ध्वनियाँ आराम से सुन लेते हैं।
क्योंकि बातचीत का सामान्य व्यवहार अमूमन २६० साइकिल प्रतिसेकिंड की ध्वनियों के आसपास ही रहता ही इसलिए पचास साला लोगों को कोई श्रवण सम्बन्धी बाधा यूं पेश नहीं आती है।
किसी भी आवाज़ को सही दिशा में कान देने का हमारा गुण इस तथ्य से संचालित रहता है के हमारा कान यदि आवाज़ का स्रोत हमारे दाहिने और है तो दायां कान बाएं की अपेक्षा इस ध्वनि को ०.००० १ सेकिंड पहले (एक सेकिंड का दस -हज़ारवां भाग पहले )सुन लेगा। आखिर हमारे दोनों कानों के बीच फांसला भी तो है हमारी दोनों आँखों की तरह।
और इसी से हम कयास लगा लेते हैं दूर से आती किसी बैंड बाजे की आवाज़ का के वह किस दिशा से आ रही है। अलबत्ता यदि आप मुड़के उसी तरफ देखने लगे तब आपके दोनों कानों तक आवाज़ एक साथ ही पहुंचेगी जैसे सामने से आती कोई आवाज़ के लिए कयास नहीं लगाना पडता है यह वैसे ही है।
क्या आप जानते हैं आपको सबसे ज्यादा दिलचस्पी अपनी आवाज़ को ही सुनने में होती है क्योंकि उसे आप सुनते हैं सुनना चाहते भी है चाव से।
अपनी आवाज़ आप वायु के उन कम्पनों द्वारा ही नहीं सुनते हैं जो आपके कान तक पहुँचते हैं ,खोपड़ी से होते हुए अस्थि के चालन द्वारा यानी बोन कंडक्शन भी एक मोड बनता है आपके श्रवण का लेकिन तब जब आप अपनी ही आवाज़ सुनते हैं। चाहे वह आपके कुछ खाने पीने सटकने से ही पैदा हो रही है या कोई कुरकुरी चीज़ खाने चबाने से। दांत के नीचे किरकरी आने पर आपको कैसा विचित्र आभास और अनपेक्षित अप्रत्याशित आभास होता है ये आप तब महसूस करते हैं जब दाल में खाना खाते वक्त कोई कंकरी निकल आती है। यही वजह है कई मर्तबा आप अपनी ही रिकार्ड की गई आवाज़ सुनकर हैरानी जतलाते हैं। क्योंकि इसमें बोन कंडक्शन सम्प्रेषण शामिल नहीं है आवाज़ का। अपनी ही आवाज़ की गमक और हुमक ,अनुनाद आपकी खोपड़ी कपाल से होकर ही आरही है निम्न आवृति की ध्वनियों से।रिकार्डिंग में यह नदारद रहती है। इसीलिए रिकार्ड की गई आवाज़ वीक प्रतीत होती है आपको।
और इसीलिए रिकार्ड की गई आवाज में वह जान भी नहीं होती है अलबत्ता आजकल उसे संशोधित करने वाली अनेक विधियां और साधन संशाधन रिकार्डिंग तामझाम मॉडुलेटर तमाम किस्म के आ गए हैं।
अफसोसनाक है श्रवन -क्षय आइंदा और भी बढ़ता जाएगा व्यस्त्तता बढ़ने के साथ सिटी नॉइज़ में इज़ाफ़ा होते जाने के साथ।
आज की स्थिति पर गौर करते हैं ये बताने के साथ के आज भी हम अपने परिवेश से आती अनेक प्रकार की ध्वनियाँ सुनने को राजी नहीं हैं जो हमारे काम की और ज्ञानवर्धक भी हो सकती हैं उपयोगी भी। क्योंकि हम थके मांदे रहते हैं।
युवाभीड़ की स्थिति क्या है ?
आपने अक्सर देखा होगा बातचीत के दौरान लोगों को कहते सुनते -'भाई साहब आपने क्या कहा था मैं मिस कर गया मेरा ध्यान कहीं और था या फिर ये के यार थोड़ा वॉल्यूम बढ़ा दो टीवी का कुछ पल्ले नहीं पड़ रहा है।'
श्रवण ह्रास ही है यह। एक अनुमान के अनुसार इस श्रवण -क्षय(हियरिंग लोस ) से इस समय तकरीबन चार करोड़ अस्सी लाख अमरीकी वयस्क (बालिग़ ,एडल्ट )ग्रस्त हैं।
कुछ बढ़ती उम्र के साथ हमारे लाइलाज पुराने पड़ चुके रोग भी इसके लिए कुसूरवार ठहरते हैं तो खासकर जीवनशैली रोग (दिल की बीमारियां ,हाई ब्लडप्रेशर ,डायबिटीज आदि )जिनके चलते हमारे श्रवण उपकरण कानों की ओर पूरा रक्त या तो नहीं पहुँच पाता है या सर्कुलेशन कमज़ोर हो जाता है। इससे श्रवण निर्बाध नहीं रहता है। इन रोगों के इलाज़ से भी नुकसानी ही उठानी पड़ती है कानों को इसकी भी कीमत चुकानी पड़ती है।
बिना नुश्खे के तथा नुश्खे वाली दो सौ से ज्यादा प्रिक्रिप्शन दवाएं कानों पे भारी पड़ रहीं हैं इनमें मूत्रल दवाएं (diuretics ),एंटीबायोटिक्स यहां तक के जीवन रक्षक एस्पिरिन भी शामिल है। इन दवाओं से अंदरूनी कान असरग्रस्त हो सकता है।
अपने चिकित्सक से भले निस्संकोच पूछिए क्या मैं जो दवाएं ले रहा हूँ वह मेरी श्रवण शक्ति को प्रभावित करेंगी।
युवा भीड़ का हाल यह है के आज जितने युवा किशोर -किशोरियां एअरबड्स और हेडफोन्स लगाए घूम रहें हैं उनसे पैदा तेज़ आवाज़ कानों पे भारी पड़ रही है। इस वक्त गत दशक की बनिस्पत तीस फीसद ज्यादा युवा नॉइज़ से पैदा श्रवण ह्रास से ग्रस्त हैं। बढ़ता डेसिबेल लेवल उनके कानों को कुतर रहा है।
इससे बचने के उपाय आज़माने चाहिए। फिर चाहे वह घास काटने वाले उपकरण हों या आइस की शवलिंग करने के लिए प्रयुक्त तामझाम हो कानों का बचाव ज़रूरी है। आईपॉड का संगीत अच्छा लगता है मगर किस कीमत पर। आज ऐसे डेसिबेल मीटर उपलब्ध हैं जो आपके स्मार्ट फोन को साउंड मीटर में तब्दील कर देते हैं . आप भांप लेते हैं डेसिबेल से पैदा खतरों को। चर्च का संगीत (डेसिबेल लेवल इस संगीत का ) भी सुरक्षित नहीं माना गया है।एयरप्लग्स ,नॉइज़ केंसलिंग हेडफोन्स भी आज उपलभ्ध हैं।वैक्यूम क्लीनर ,स्नोब्लोवर के इस्तेमाल के दौरान इन्हें पहन लीजिये। श्रवण के माहिरों की यही सलाह है। बचाव में ही बचाव है।
एक सक्षम भरोसेमंद कान के बिना दृश्य जगत की जानकारी अधूरी ही रह जायेगी। संगीत सुनते वक्त टीवी देखते वक्त थोड़ी आवाज़ कम कर लीजिये धीरे -धीरे यही अच्छा लगने लगेगा।इस दूसरी क़िस्त में फिर से दोहरा दें -जीवन और जगत और अध्यात्म का ज्ञान प्राप्त करने के लिए भी श्रवण एक बेहद ज़रूरी खिड़की है।
श्रवण मंगलम ,ज्ञान मंगलम ,दृश्य मंगलम दीदार मंगलम।
क्योंकि बातचीत का सामान्य व्यवहार अमूमन २६० साइकिल प्रतिसेकिंड की ध्वनियों के आसपास ही रहता ही इसलिए पचास साला लोगों को कोई श्रवण सम्बन्धी बाधा यूं पेश नहीं आती है।
किसी भी आवाज़ को सही दिशा में कान देने का हमारा गुण इस तथ्य से संचालित रहता है के हमारा कान यदि आवाज़ का स्रोत हमारे दाहिने और है तो दायां कान बाएं की अपेक्षा इस ध्वनि को ०.००० १ सेकिंड पहले (एक सेकिंड का दस -हज़ारवां भाग पहले )सुन लेगा। आखिर हमारे दोनों कानों के बीच फांसला भी तो है हमारी दोनों आँखों की तरह।
और इसी से हम कयास लगा लेते हैं दूर से आती किसी बैंड बाजे की आवाज़ का के वह किस दिशा से आ रही है। अलबत्ता यदि आप मुड़के उसी तरफ देखने लगे तब आपके दोनों कानों तक आवाज़ एक साथ ही पहुंचेगी जैसे सामने से आती कोई आवाज़ के लिए कयास नहीं लगाना पडता है यह वैसे ही है।
क्या आप जानते हैं आपको सबसे ज्यादा दिलचस्पी अपनी आवाज़ को ही सुनने में होती है क्योंकि उसे आप सुनते हैं सुनना चाहते भी है चाव से।
अपनी आवाज़ आप वायु के उन कम्पनों द्वारा ही नहीं सुनते हैं जो आपके कान तक पहुँचते हैं ,खोपड़ी से होते हुए अस्थि के चालन द्वारा यानी बोन कंडक्शन भी एक मोड बनता है आपके श्रवण का लेकिन तब जब आप अपनी ही आवाज़ सुनते हैं। चाहे वह आपके कुछ खाने पीने सटकने से ही पैदा हो रही है या कोई कुरकुरी चीज़ खाने चबाने से। दांत के नीचे किरकरी आने पर आपको कैसा विचित्र आभास और अनपेक्षित अप्रत्याशित आभास होता है ये आप तब महसूस करते हैं जब दाल में खाना खाते वक्त कोई कंकरी निकल आती है। यही वजह है कई मर्तबा आप अपनी ही रिकार्ड की गई आवाज़ सुनकर हैरानी जतलाते हैं। क्योंकि इसमें बोन कंडक्शन सम्प्रेषण शामिल नहीं है आवाज़ का। अपनी ही आवाज़ की गमक और हुमक ,अनुनाद आपकी खोपड़ी कपाल से होकर ही आरही है निम्न आवृति की ध्वनियों से।रिकार्डिंग में यह नदारद रहती है। इसीलिए रिकार्ड की गई आवाज़ वीक प्रतीत होती है आपको।
और इसीलिए रिकार्ड की गई आवाज में वह जान भी नहीं होती है अलबत्ता आजकल उसे संशोधित करने वाली अनेक विधियां और साधन संशाधन रिकार्डिंग तामझाम मॉडुलेटर तमाम किस्म के आ गए हैं।
अफसोसनाक है श्रवन -क्षय आइंदा और भी बढ़ता जाएगा व्यस्त्तता बढ़ने के साथ सिटी नॉइज़ में इज़ाफ़ा होते जाने के साथ।
आज की स्थिति पर गौर करते हैं ये बताने के साथ के आज भी हम अपने परिवेश से आती अनेक प्रकार की ध्वनियाँ सुनने को राजी नहीं हैं जो हमारे काम की और ज्ञानवर्धक भी हो सकती हैं उपयोगी भी। क्योंकि हम थके मांदे रहते हैं।
युवाभीड़ की स्थिति क्या है ?
आपने अक्सर देखा होगा बातचीत के दौरान लोगों को कहते सुनते -'भाई साहब आपने क्या कहा था मैं मिस कर गया मेरा ध्यान कहीं और था या फिर ये के यार थोड़ा वॉल्यूम बढ़ा दो टीवी का कुछ पल्ले नहीं पड़ रहा है।'
श्रवण ह्रास ही है यह। एक अनुमान के अनुसार इस श्रवण -क्षय(हियरिंग लोस ) से इस समय तकरीबन चार करोड़ अस्सी लाख अमरीकी वयस्क (बालिग़ ,एडल्ट )ग्रस्त हैं।
कुछ बढ़ती उम्र के साथ हमारे लाइलाज पुराने पड़ चुके रोग भी इसके लिए कुसूरवार ठहरते हैं तो खासकर जीवनशैली रोग (दिल की बीमारियां ,हाई ब्लडप्रेशर ,डायबिटीज आदि )जिनके चलते हमारे श्रवण उपकरण कानों की ओर पूरा रक्त या तो नहीं पहुँच पाता है या सर्कुलेशन कमज़ोर हो जाता है। इससे श्रवण निर्बाध नहीं रहता है। इन रोगों के इलाज़ से भी नुकसानी ही उठानी पड़ती है कानों को इसकी भी कीमत चुकानी पड़ती है।
बिना नुश्खे के तथा नुश्खे वाली दो सौ से ज्यादा प्रिक्रिप्शन दवाएं कानों पे भारी पड़ रहीं हैं इनमें मूत्रल दवाएं (diuretics ),एंटीबायोटिक्स यहां तक के जीवन रक्षक एस्पिरिन भी शामिल है। इन दवाओं से अंदरूनी कान असरग्रस्त हो सकता है।
अपने चिकित्सक से भले निस्संकोच पूछिए क्या मैं जो दवाएं ले रहा हूँ वह मेरी श्रवण शक्ति को प्रभावित करेंगी।
युवा भीड़ का हाल यह है के आज जितने युवा किशोर -किशोरियां एअरबड्स और हेडफोन्स लगाए घूम रहें हैं उनसे पैदा तेज़ आवाज़ कानों पे भारी पड़ रही है। इस वक्त गत दशक की बनिस्पत तीस फीसद ज्यादा युवा नॉइज़ से पैदा श्रवण ह्रास से ग्रस्त हैं। बढ़ता डेसिबेल लेवल उनके कानों को कुतर रहा है।
इससे बचने के उपाय आज़माने चाहिए। फिर चाहे वह घास काटने वाले उपकरण हों या आइस की शवलिंग करने के लिए प्रयुक्त तामझाम हो कानों का बचाव ज़रूरी है। आईपॉड का संगीत अच्छा लगता है मगर किस कीमत पर। आज ऐसे डेसिबेल मीटर उपलब्ध हैं जो आपके स्मार्ट फोन को साउंड मीटर में तब्दील कर देते हैं . आप भांप लेते हैं डेसिबेल से पैदा खतरों को। चर्च का संगीत (डेसिबेल लेवल इस संगीत का ) भी सुरक्षित नहीं माना गया है।एयरप्लग्स ,नॉइज़ केंसलिंग हेडफोन्स भी आज उपलभ्ध हैं।वैक्यूम क्लीनर ,स्नोब्लोवर के इस्तेमाल के दौरान इन्हें पहन लीजिये। श्रवण के माहिरों की यही सलाह है। बचाव में ही बचाव है।
एक सक्षम भरोसेमंद कान के बिना दृश्य जगत की जानकारी अधूरी ही रह जायेगी। संगीत सुनते वक्त टीवी देखते वक्त थोड़ी आवाज़ कम कर लीजिये धीरे -धीरे यही अच्छा लगने लगेगा।इस दूसरी क़िस्त में फिर से दोहरा दें -जीवन और जगत और अध्यात्म का ज्ञान प्राप्त करने के लिए भी श्रवण एक बेहद ज़रूरी खिड़की है।
श्रवण मंगलम ,ज्ञान मंगलम ,दृश्य मंगलम दीदार मंगलम।
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