लोकसंस्कृति की मिठास :हरयाणवी रागिनी
राग -रागिनियों का अपना कुनबा पसारा है (जिसका पूरा विवरण आपको गुरुग्रंथ साहब के अलावा अन्यत्र भी मिल सकता है )जो लोकसंस्कृति में माधुरी घोलता मिलाता आया है। रागिनियाँ अक्सर कोई कथा कोई सन्देश देती आईं हैं जो सहज ही लोकमानस के हृदय की गहराइयों में उतर जाता है। प्रस्तुत रागिनी में जिस किस्से का ज़िक्र है उसका पूरा विवरण श्रीमद्भागवद पुराण में मिलता है। जो भी कुछ भगवान् से सम्बंधित होता है उसे ही भागवद कहा जाता है।
श्रवण ,मनन(contemplation ) और फिर निरंतर मनन (निदिध्यासन ,constant contemplation )आशीर्वाद प्राप्त होगा माँ गंगे का :
एरी !गांगाजी !तेरे खेत में ,री माई ,
गडरी हिंडोले चार ,कन्हैया! झूलते संग (श्री )रुक्मण झूल रही।
ओ !शिवजी जी के करमनडर में ,विष्णुजी का लागा पैर ,
पवन पवित्तर अमृत बण के , परबत ऊपर गई ठहर ,
भागीरथ ने तप कर राख्या ,खोज के लाया था नहर ,
(ओ )हे रे सात हज़ार सगर के बेटे गौ मुक्ति का पारे धाम ,
अयोध्या के धोरे आके गंगा जी धराया नाम ,हेरे !ब्रह्मा विष्णु शिवजी तीनों
पूजा करते सुबह शाम। हेरे !सब दुनिया के हेत में,री ,कत
हो रही जैजैकार ,कन्हैया झूलते संग रुक्मण झूल रही।
(२ )
हे री! अष्ट वसु पैदा किये ऋषियों का उतारा श्राप
शांतनु के ब्याही गई वसुओं का बनाया पात ,
शील गंगे छोड़के मैं, सुरग में गई थी आप ,तीन चरण पाछे रह गए ,
एक चरण धर के आई , मोसे नील इस पृथ्वी पे अमृत रस बण के आई ,
हो यजु ,रिग , अथर साम वेदों में बताई गई ,
हे शंकर चले री !गणेत में ,कहीं फ़रसी मोटर -कार कन्हैया छोल के ,
संग रुक्मण झूल रही .......
(३ )
हो री !गौमुखी बदरी - नाथ ,लक्ष्मण- झूला फूटी नहर ,
हरिद्वार ,ऋषिकेश , कनखल में अमृत की लहर ,
गढ़मुक्तेश्वर इलाहाबाद, 'गया- जी' पवित्तर शहर ,
ए रे कलकत्ते में चीति हो गई , हावड़ा दिखाई चाल ,
समुन्दर में जाके मिल गी , सागर का घटाया मान ,
हे रे !सूर्य- धीन अमृत पीके अम्बुजल का करा बखान ,
ओ !फिर तो गई थी समेत में ,जरे लड़े अजय किशन मुरार,
कन्हैया ढोल के संग रुक्मण झूल रही रही।
(४ )
एरी !बद्रीनाथ तेरे अंदर जान के मिले थे आप ,
लिखमी चंद भी तेरे अंदर आण के मिले थे आप ,
मान सिंह भी तेरे अंदर, छाण के मिले थे आप ,
अरी !वो ही मुक्ति पा जा! गंगे! ,तेरे अंदर नहाने आला ,
पालकी में रहने लग गया, मामूली सा गाने आला
मांगे राम एक दिन गंगे , तेरे अंदर आने वाला
ए री आन मिलेगा तेरे रेत में एरी किते खोवेगा संसार ,
कन्हैया छोळ के ,संग रुक्मण झूल रही।
सन्दर्भ -सामिग्री :
https://www.youtube.com/watch?v=-ExjLYWFg8g
Singer name - narender dangi
album name - bagad ki gajab luhari
area - badhsa jhajjar
राग -रागिनियों का अपना कुनबा पसारा है (जिसका पूरा विवरण आपको गुरुग्रंथ साहब के अलावा अन्यत्र भी मिल सकता है )जो लोकसंस्कृति में माधुरी घोलता मिलाता आया है। रागिनियाँ अक्सर कोई कथा कोई सन्देश देती आईं हैं जो सहज ही लोकमानस के हृदय की गहराइयों में उतर जाता है। प्रस्तुत रागिनी में जिस किस्से का ज़िक्र है उसका पूरा विवरण श्रीमद्भागवद पुराण में मिलता है। जो भी कुछ भगवान् से सम्बंधित होता है उसे ही भागवद कहा जाता है।
श्रवण ,मनन(contemplation ) और फिर निरंतर मनन (निदिध्यासन ,constant contemplation )आशीर्वाद प्राप्त होगा माँ गंगे का :
एरी !गांगाजी !तेरे खेत में ,री माई ,
गडरी हिंडोले चार ,कन्हैया! झूलते संग (श्री )रुक्मण झूल रही।
ओ !शिवजी जी के करमनडर में ,विष्णुजी का लागा पैर ,
पवन पवित्तर अमृत बण के , परबत ऊपर गई ठहर ,
भागीरथ ने तप कर राख्या ,खोज के लाया था नहर ,
(ओ )हे रे सात हज़ार सगर के बेटे गौ मुक्ति का पारे धाम ,
अयोध्या के धोरे आके गंगा जी धराया नाम ,हेरे !ब्रह्मा विष्णु शिवजी तीनों
पूजा करते सुबह शाम। हेरे !सब दुनिया के हेत में,री ,कत
हो रही जैजैकार ,कन्हैया झूलते संग रुक्मण झूल रही।
(२ )
हे री! अष्ट वसु पैदा किये ऋषियों का उतारा श्राप
शांतनु के ब्याही गई वसुओं का बनाया पात ,
शील गंगे छोड़के मैं, सुरग में गई थी आप ,तीन चरण पाछे रह गए ,
एक चरण धर के आई , मोसे नील इस पृथ्वी पे अमृत रस बण के आई ,
हो यजु ,रिग , अथर साम वेदों में बताई गई ,
हे शंकर चले री !गणेत में ,कहीं फ़रसी मोटर -कार कन्हैया छोल के ,
संग रुक्मण झूल रही .......
(३ )
हो री !गौमुखी बदरी - नाथ ,लक्ष्मण- झूला फूटी नहर ,
हरिद्वार ,ऋषिकेश , कनखल में अमृत की लहर ,
गढ़मुक्तेश्वर इलाहाबाद, 'गया- जी' पवित्तर शहर ,
ए रे कलकत्ते में चीति हो गई , हावड़ा दिखाई चाल ,
समुन्दर में जाके मिल गी , सागर का घटाया मान ,
हे रे !सूर्य- धीन अमृत पीके अम्बुजल का करा बखान ,
ओ !फिर तो गई थी समेत में ,जरे लड़े अजय किशन मुरार,
कन्हैया ढोल के संग रुक्मण झूल रही रही।
(४ )
एरी !बद्रीनाथ तेरे अंदर जान के मिले थे आप ,
लिखमी चंद भी तेरे अंदर आण के मिले थे आप ,
मान सिंह भी तेरे अंदर, छाण के मिले थे आप ,
अरी !वो ही मुक्ति पा जा! गंगे! ,तेरे अंदर नहाने आला ,
पालकी में रहने लग गया, मामूली सा गाने आला
मांगे राम एक दिन गंगे , तेरे अंदर आने वाला
ए री आन मिलेगा तेरे रेत में एरी किते खोवेगा संसार ,
कन्हैया छोळ के ,संग रुक्मण झूल रही।
सन्दर्भ -सामिग्री :
Ganga Ji Tere Khet Me || Haryanvi Ragni || Haryanvi Music ||Mor Music
https://www.youtube.com/watch?v=-ExjLYWFg8g
टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें