सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

The Karmic Principle ,Planetary positions and Impressions (Sanskars)

कर्म प्रधान विश्व  रची राखा ,

जो जस करहि सो तस फल चाखा। 

कर्म को प्रधानता देते हुए ही इस विश्व की रचना हुई है चाहे उस रचना प्रक्रिया को आप कॉस्मिक डांस आफ क्रिएशन कहिये ,शिव का तांडव नृत्य कहिये या फिर बिग बैंग या फिर कुछ और।प्रकृति कहिये या माया वह जीव से  कर्म करवा ही लेती है। कर्म का फल मिलता है। यह फल भी और कर्मों की वजह बन जाया करता है। इस प्रकार कर्म चक्र चलता है :

पुनरपि जन्मम पुनरपि मरणम ,
पुनरपि जननी जठरे शयनम। 

काल -चक्र कर्म- चक्र ही है। एक क्रिया है तो दूसरा 'चक्र' प्रतिक्रिया। 

कुछ कर्मों का फल इस जीवन में ही मिल जाया करता है शेष कर्म संचित अवस्था में चले जाते हैं। आगे पीछे इस या उस जन्म में उनका फल मिलता अवश्य है। 

जिनका फल इसी जीवन के रहते मिल जाता है वह 'क्रियमाण -कर्म' कहलाते हैं। शेष 'संचित -कर्म'। इन संचित कर्मों का ही जो हिस्सा 'प्रारब्ध' बन जाता है जीव उसे ही लेकर इस संसार में आता है अब आप उसे संचित कर्म फल कहो या प्रारब्ध या भाग्य। मतलब सबका एक ही निकलता है। वर्तमान में इस जीवन में कुछ कर्म फल हमें भोगने ही हैं। हम कहाँ और कब पैदा हुए यह हमारा प्रारब्ध ही है। 

इसका मतलब यह नहीं है ,कर्म करने की स्वतंत्रता नहीं है। है तभी तो आप पढ़ लिखकर कुछ बन गए। कहावत चल निकली -"पढ़ोगे लिखोगे तो बनोगे नवाब "
अनेक जन्मों में किये गए अनेक कर्मों से वृत्तियों का ,मनुष्य के रुझान का निर्माण होता है। ये वृत्तियाँ फिर और कर्मों का कारण बन जाती हैं। 

जब जीव इस आवागमन से थक हार जाता है तब वह कहता है :

अब मैं नाच्यो बहुत गोपाल 

तब उसके हाथ प्रार्थना में जुड़ जातें हैं ,किसी संत का संग साथ मिल जाता है। वह काल चक्र से बाहर आने के लिए कर्म करना सिखलाता है गीता में कृष्ण अर्जुन के माध्यम से हम सब को यही उपाय समझाते हैं। 

परिवेश के वशीभूत होकर भी व्यक्ति अच्छे या बुरे कर्म करता है। संग  साथ यहां तक के हमारा खान -पान भी कर्म का निर्धारण करता है। कर्मों के प्रेरक अनेक कारक होते हैं। 

जो कुछ है सब 'प्रारब्ध' से है कर्म से है। कई लोग कहते हैं हमारे  ग्रह  अच्छे नहीं हैं। कई कहते हैं हमारा भाग्य ही खोटा है। कुछ लोग कहते हैं हम पर भगवान् की बड़ी कृपा है। हमारा वक्त अच्छा चल रहा है। कोई शनि की साढ़े साती कोई राहु की महादशा से परेशान है। किसी की कुंडली में काल सर्प दोष बतलाया जाता है। कोई कहता है मेरी कुंडली में मंगल दोष है इसलिए मेरे साथ यह सब हो रहा है। 

क्या शाप ,वरदान सब असत्य हैं ?ग्रहों का क्या कोई प्रभाव नहीं होता ?ये सब भी अपना वजूद बनाये रहते हैं लेकिन जड़ तो व्यक्ति   के कर्म हैं ,संचित कर्म ,जो प्रारब्ध का रूप धारण करके आते हैं।  इसलिए विपरीत ग्रह दशा में भी लोग बहुत ही असाधारण काम कर जाते हैं। और बहुत अच्छी ग्रह   दशा में भी काम बिगड़ते देखे जाते हैं।इन कर्मों के द्वारा ही ग्रहों की  दशा निर्धारित होती है। 
ग्रहों के प्रभाव को लेकर भी अनेक भ्रांतियां हैं मत मतांतर हैं। 

एक जन्म की ग्रह स्थिति व्यक्ति निश्चित होती है। 

सुख दुःख भी कई प्रभाव लेकर आते हैं इनमें ग्रहों का प्रभाव भी रहता है परिवेश का भी संग साथ का भी।  

ग्रह नक्षत्रों से विद्युतचुंबकीय तरंगें आ रही हैं। इनके चुंबकीय क्षेत्र गर्भस्थ को गर्भाशय से बाहर आने के लिए प्रेरित करते हैं। जन्म के समय का निर्धारण कर सकते हैं। 

सनातन संस्कृति में ग्रहों का एक मानक स्थान रहा है। विक्रम सम्वत का निर्धारण ,महीनों और तिथियों के नाम इन्हीं ग्रहों से इनकी ही प्रावस्थाओं से आये हैं।जैसे चाँद की कलाओं से प्रावस्थाओं phases से एकादशी से लेकर पूर्णिमा हैं। वैसे ही महीनों के शुद्ध भारतीय नाम हैं जो नक्षत्रों पर आधारित हैं। 

चैत्र चित्रा नक्षत्र से आया है। वैशाख विशाखा से ,भादों भद्रा से ,कार्तिक कृत्तिका से। ज्येष्ठ ज्येष्ठा नक्षत्र से आया है। इन्हीं नक्षत्रों के समुच्चय से राशि (zodiac )का निर्माण हो जाता है। ग्रह इन राशियों में ही विचरण करते हैं। 

प्रत्येक ग्रह का अपना एक चुंबकीय क्षेत्र है जिसमें वह लिपटा हुआ है। हमारी पृथ्वी का भी एक चुंबकीय क्षेत्र है यह तो एक ऐसा चुम्बक है जिसके ध्रुव अपनी स्थिति आपस में ही बदलते रहते हैं उत्तर दक्षिण हो जाता है और दक्षिण उत्तर। 

जो ब्रह्मांडे सो पिण्डे 

हमारा दिमाग भी एक चुंबकीय क्षेत्र से आबद्ध है।इमेजिंग तकनीकें एक्स -रे,सी. टी. स्कैन  , एमआरआई (मैग्नेटिक रेज़ोनेंस इमेजिंग ),अल्ट्रासाउण्ड ,पैट (पॉज़िट्रॉन एमिशन  टमोग्रफी )सभी हमारी काया की बारीकबीनी ,पड़ताल करते हैं। ग्रह कमोबेश क्यों नहीं असर डाल सकते। अलबत्ता वह असर प्रारब्ध से बाहर नहीं होगा। प्रारब्ध (संचित कर्मों की निर्मिति )ही होगा।संचित कर्मों के फल के तहत ही आएगा ग्रहों का भी प्रभाव। 

अलबत्ता ग्रह किस राशि में किस भाव से बैठा है यदि आपको विक्रम सम्वत के हिसाब से अपना जन्म काल मालूम है तब आपके भविष्य की भी प्रागुक्ति इसी भाव के आधार पर की जा सकती है आपके अतीत को भी खंगाला जा सकता है।

ज्योतिष विद्या कोई परा -विद्या नहीं है जिसे सीखा न जा सके। बारह राशियों में २७ नक्षत्रों  का विभाजन है।हरेक राशि को एक सिंबल एक चिन्ह एक स्वभाव दिया गया है।  

ग्रह दशा निमित्त बन जातीं हैं। व्यक्ति के कर्म संस्कार हर हाल में अनुकूल और विपरीत ग्रह स्थितियों में अपना  काम करते रह सकते हैं। करते हैं। अलबत्ता सुपीरियर (exo-planets सुदूर बाहरी ग्रह जो हमसे अधिक दूरी पर हैं )और अंदरूनी इंफीरिएर प्लेनेट्स और इनका चुंबकत्व अपना अलग आवेग प्रभाव अलग अलग तीव्रता के साथ हम पर डालते रहते हैं। इसे झुठलाया नहीं जा सकता। 

ज्योतिष विद्या अपने स्थान पर लेकिन मनुष्य के जीवन में जो सुख दुःख हैं वह उसका प्रारब्ध ही है संचित कर्म ही हैं जो रूप बदलके आया है। जीवन में दुःख कहीं से भी आ सकता है। यह कर्मों की शक्ति है। यही कर्म चक्र है काल चक्र है शेष सब कारण बनते हैं।अमीरी गरीबी सब हमारे अपने कर्मों का फल है चाहे किसी भी दिशा से आया हो।ज्योतिष के माहिर भी ग्रह भाव शान्ति के लिए कर्म ही बतलाते हैं यह दान करो वह दान करो यह जाप करो वह जाप करो। ज्योतिष अपरा विद्या है जिसे सीखा समझा जा सकता है। 

ग्रहों के नकारात्मक और सकारात्मक प्रभाव के पीछे भी हमारा कर्म ही है। कर्म के द्वारा योग साधना के द्वारा व्यक्ति ग्रहों के प्रभाव को शांत कर सकता है। ग्रह के बुरे प्रभाव से बचने का उपाय भी कर्म ही है। ग्रह के अच्छे या बुरे प्रभाव के पीछे भी हमारा कर्म ही है। कोई भी इस कर्म के सिद्धांत से बाहर नहीं जा सकता इसके अंतर्गत ही आएगा। कर्म संस्कारों के वशीभूत होकर ही व्यक्ति कर्म करता है। कर्म का सिद्धांत ही मूलभूत सिद्धांत  है। 


Image result for planets in motion pictures
Image result for planets in motion pictures
Image result for planets in motion pictures
Image result for planets in motion pictures
कर्म प्रधान विश्व  रची राखा ,

जो जस करहि सो तस फल चाखा। 

कर्म को प्रधानता देते हुए ही इस विश्व की रचना हुई है चाहे उस रचना प्रक्रिया को आप कॉस्मिक डांस आफ क्रिएशन कहिये ,शिव का तांडव नृत्य कहिये या फिर बिग बैंग या फिर कुछ और।प्रकृति कहिये या माया वह जीव से  कर्म करवा ही लेती है। कर्म का फल मिलता है। यह फल भी और कर्मों की वजह बन जाया करता है। इस प्रकार कर्म चक्र चलता है :

पुनरपि जन्मम पुनरपि मरणम ,
पुनरपि जननी जठरे शयनम। 

काल -चक्र कर्म- चक्र ही है। एक क्रिया है तो दूसरा 'चक्र' प्रतिक्रिया। 

कुछ कर्मों का फल इस जीवन में ही मिल जाया करता है शेष कर्म संचित अवस्था में चले जाते हैं। आगे पीछे इस या उस जन्म में उनका फल मिलता अवश्य है। 

जिनका फल इसी जीवन के रहते मिल जाता है वह 'क्रियमाण -कर्म' कहलाते हैं। शेष 'संचित -कर्म'। इन संचित कर्मों का ही जो हिस्सा 'प्रारब्ध' बन जाता है जीव उसे ही लेकर इस संसार में आता है अब आप उसे संचित कर्म फल कहो या प्रारब्ध या भाग्य। मतलब सबका एक ही निकलता है। वर्तमान में इस जीवन में कुछ कर्म फल हमें भोगने ही हैं। हम कहाँ और कब पैदा हुए यह हमारा प्रारब्ध ही है। 

इसका मतलब यह नहीं है ,कर्म करने की स्वतंत्रता नहीं है। है तभी तो आप पढ़ लिखकर कुछ बन गए। कहावत चल निकली -"पढ़ोगे लिखोगे तो बनोगे नवाब "
अनेक जन्मों में किये गए अनेक कर्मों से वृत्तियों का ,मनुष्य के रुझान का निर्माण होता है। ये वृत्तियाँ फिर और कर्मों का कारण बन जाती हैं। 

जब जीव इस आवागमन से थक हार जाता है तब वह कहता है :

अब मैं नाच्यो बहुत गोपाल 

तब उसके हाथ प्रार्थना में जुड़ जातें हैं ,किसी संत का संग साथ मिल जाता है। वह काल चक्र से बाहर आने के लिए कर्म करना सिखलाता है गीता में कृष्ण अर्जुन के माध्यम से हम सब को यही उपाय समझाते हैं। 

परिवेश के वशीभूत होकर भी व्यक्ति अच्छे या बुरे कर्म करता है। संग  साथ यहां तक के हमारा खान -पान भी कर्म का निर्धारण करता है। कर्मों के प्रेरक अनेक कारक होते हैं। 

जो कुछ है सब 'प्रारब्ध' से है कर्म से है। कई लोग कहते हैं हमारे  ग्रह  अच्छे नहीं हैं। कई कहते हैं हमारा भाग्य ही खोटा है। कुछ लोग कहते हैं हम पर भगवान् की बड़ी कृपा है। हमारा वक्त अच्छा चल रहा है। कोई शनि की साढ़े साती कोई राहु की महादशा से परेशान है। किसी की कुंडली में काल सर्प दोष बतलाया जाता है। कोई कहता है मेरी कुंडली में मंगल दोष है इसलिए मेरे साथ यह सब हो रहा है। 

क्या शाप ,वरदान सब असत्य हैं ?ग्रहों का क्या कोई प्रभाव नहीं होता ?ये सब भी अपना वजूद बनाये रहते हैं लेकिन जड़ तो व्यक्ति   के कर्म हैं ,संचित कर्म ,जो प्रारब्ध का रूप धारण करके आते हैं।  इसलिए विपरीत ग्रह दशा में भी लोग बहुत ही असाधारण काम कर जाते हैं। और बहुत अच्छी ग्रह   दशा में भी काम बिगड़ते देखे जाते हैं।इन कर्मों के द्वारा ही ग्रहों की  दशा निर्धारित होती है। 
ग्रहों के प्रभाव को लेकर भी अनेक भ्रांतियां हैं मत मतांतर हैं। 

एक जन्म की ग्रह स्थिति व्यक्ति निश्चित होती है। 

सुख दुःख भी कई प्रभाव लेकर आते हैं इनमें ग्रहों का प्रभाव भी रहता है परिवेश का भी संग साथ का भी।  

ग्रह नक्षत्रों से विद्युतचुंबकीय तरंगें आ रही हैं। इनके चुंबकीय क्षेत्र गर्भस्थ को गर्भाशय से बाहर आने के लिए प्रेरित करते हैं। जन्म के समय का निर्धारण कर सकते हैं। 

सनातन संस्कृति में ग्रहों का एक मानक स्थान रहा है। विक्रम सम्वत का निर्धारण ,महीनों और तिथियों के नाम इन्हीं ग्रहों से इनकी ही प्रावस्थाओं से आये हैं।जैसे चाँद की कलाओं से प्रावस्थाओं phases से एकादशी से लेकर पूर्णिमा हैं। वैसे ही महीनों के शुद्ध भारतीय नाम हैं जो नक्षत्रों पर आधारित हैं। 

चैत्र चित्रा नक्षत्र से आया है। वैशाख विशाखा से ,भादों भद्रा से ,कार्तिक कृत्तिका से। ज्येष्ठ ज्येष्ठा नक्षत्र से आया है। इन्हीं नक्षत्रों के समुच्चय से राशि (zodiac )का निर्माण हो जाता है। ग्रह इन राशियों में ही विचरण करते हैं। 

प्रत्येक ग्रह का अपना एक चुंबकीय क्षेत्र है जिसमें वह लिपटा हुआ है। हमारी पृथ्वी का भी एक चुंबकीय क्षेत्र है यह तो एक ऐसा चुम्बक है जिसके ध्रुव अपनी स्थिति आपस में ही बदलते रहते हैं उत्तर दक्षिण हो जाता है और दक्षिण उत्तर। 

जो ब्रह्मांडे सो पिण्डे 

हमारा दिमाग भी एक चुंबकीय क्षेत्र से आबद्ध है।इमेजिंग तकनीकें एक्स -रे,सी. टी. स्कैन  , एमआरआई (मैग्नेटिक रेज़ोनेंस इमेजिंग ),अल्ट्रासाउण्ड ,पैट (पॉज़िट्रॉन एमिशन  टमोग्रफी )सभी हमारी काया की बारीकबीनी ,पड़ताल करते हैं। ग्रह कमोबेश क्यों नहीं असर डाल सकते। अलबत्ता वह असर प्रारब्ध से बाहर नहीं होगा। प्रारब्ध (संचित कर्मों की निर्मिति )ही होगा।संचित कर्मों के फल के तहत ही आएगा ग्रहों का भी प्रभाव। 

अलबत्ता ग्रह किस राशि में किस भाव से बैठा है यदि आपको विक्रम सम्वत के हिसाब से अपना जन्म काल मालूम है तब आपके भविष्य की भी प्रागुक्ति इसी भाव के आधार पर की जा सकती है आपके अतीत को भी खंगाला जा सकता है।

ज्योतिष विद्या कोई परा -विद्या नहीं है जिसे सीखा न जा सके। बारह राशियों में २७ नक्षत्रों  का विभाजन है।हरेक राशि को एक सिंबल एक चिन्ह एक स्वभाव दिया गया है।  

ग्रह दशा निमित्त बन जातीं हैं। व्यक्ति के कर्म संस्कार हर हाल में अनुकूल और विपरीत ग्रह स्थितियों में अपना  काम करते रह सकते हैं। करते हैं। अलबत्ता सुपीरियर (exo-planets सुदूर बाहरी ग्रह जो हमसे अधिक दूरी पर हैं )और अंदरूनी इंफीरिएर प्लेनेट्स और इनका चुंबकत्व अपना अलग आवेग प्रभाव अलग अलग तीव्रता के साथ हम पर डालते रहते हैं। इसे झुठलाया नहीं जा सकता। 

ज्योतिष विद्या अपने स्थान पर लेकिन मनुष्य के जीवन में जो सुख दुःख हैं वह उसका प्रारब्ध ही है संचित कर्म ही हैं जो रूप बदलके आया है। जीवन में दुःख कहीं से भी आ सकता है। यह कर्मों की शक्ति है। यही कर्म चक्र है काल चक्र है शेष सब कारण बनते हैं।अमीरी गरीबी सब हमारे अपने कर्मों का फल है चाहे किसी भी दिशा से आया हो।ज्योतिष के माहिर भी ग्रह भाव शान्ति के लिए कर्म ही बतलाते हैं यह दान करो वह दान करो यह जाप करो वह जाप करो। ज्योतिष अपरा विद्या है जिसे सीखा समझा जा सकता है। 

ग्रहों के नकारात्मक और सकारात्मक प्रभाव के पीछे भी हमारा कर्म ही है। कर्म के द्वारा योग साधना के द्वारा व्यक्ति ग्रहों के प्रभाव को शांत कर सकता है। ग्रह के बुरे प्रभाव से बचने का उपाय भी कर्म ही है। ग्रह के अच्छे या बुरे प्रभाव के पीछे भी हमारा कर्म ही है। कोई भी इस कर्म के सिद्धांत से बाहर नहीं जा सकता इसके अंतर्गत ही आएगा। कर्म संस्कारों के वशीभूत होकर ही व्यक्ति कर्म करता है। कर्म का सिद्धांत ही मूलभूत सिद्धांत  है। 

Image result for planets in motion pictures
    


टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

मन फूला फूला फिरे जगत में झूठा नाता रे , जब तक जीवे माता रोवे ,बहन रोये दस मासा रे , तेरह दिन तक तिरिया रोवे फ़ेर करे घर वासा रे।

पेड़ से फल पकने के बाद स्वत : ही गिर जाता है डाल से अलग हो जाता है एक मनुष्य ही है जो पकी उम्र के बाद भी बच्चों के बच्चों से चिपका रहता है। इसे ही मोह कहते हैं। माया के कुनबे में लिपटा रहता है मनुष्य -मेरा बेटा मेरा पोता मेरे नाती आदि आदि से आबद्ध रहता है।  ऐसे में आध्यात्मिक विकास के लिए अवकाश ही कहाँ रहता है लिहाज़ा : पुनरपि जन्मम पुनरपि मरणम , पुनरपि जननी जठरे शयनम।  अनेकों जन्म बीत गए ट्रेफिक ब्रेक हुआ ही नहीं।    क्या इसीलिए ये मनुष्य तन का चोला पहना था। आखिर तुम्हारा निज स्वरूप क्या है। ये सब नाते नाती रिश्ते तुम्हारे देह के संबंधी हैं  तुम्हारे निज स्वरूप से इनका कोई लेना देना नहीं है। शरीर नहीं शरीर के मालिक  शरीरी हो तुम। पहचानों अपने निज सच्चिदानंद स्वरूप को।  अहम् ब्रह्मास्मि  कबीर माया के इसी कुनबे पर कटाक्ष करते हुए कहते हैं :मनुष्य जब यह शरीर छोड़ देता है स्थूल तत्वों का संग्रह जब सूक्ष्म रूप पांच में तब्दील हो जाता है तब माँ जीवन भर संतान के लिए विलाप करती है उस संतान के लिए जो उसके जीते जी शरी...

You are as old as your feet (HIndi ): *बुढापा पैरों से शुरु होता है* (विशेषतः मेरे सीनियर सिटीजन मित्रों के लिए)

  *बुढापा पैरों से शुरु होता है* (विशेषतः मेरे सीनियर सिटीजन मित्रों के लिए) मुझे आज उपरोक्त संदर्भ में एक समझने लायक लेख मिला। मैं तो रोज कम से कम 45 मिनट लगातार पैदल चलता हूं जो मेरे ब्लड शुगर लेवल को नियंत्रित रखने में मदद करता है व यही सीनियर सिटीजन्स हेतु सबसे अच्छी एक्सरसाइज है। इस लेख में पैदल चलने के और भी फायदे बताए हैं। मैं पैरों के नर्व्स और वेंस के लिए स्ट्रेच एक्सरसाइज़ में अलाली कर लेता था, जो अब नही करूँगा। क्योंकि पिंडली को कुछ लोग इसमें नर्व्स और वेंस के कारण इसे छोटा दिल जो कहते हैं। शायद ये लेख आपको भी उचित लगे। मनोहर गजपल्ला *बुढ़ापा पैरों से ऊपर की ओर शुरू होता है !  अपने पैरों को सक्रिय और मजबूत रखें !!* जैसे-जैसे हम साल ढलते जाते हैं और रोजाना बूढ़े होते जाते हैं, हमारे पैर हमेशा सक्रिय और मजबूत बने रहने चाहिए। जैसा।  हम लगातार बूढ़े हो रहे हैं / वृद्ध हो रहे हैं, हमें  बालों के भूरे (या) त्वचा के झड़ने (या) झुर्रियों से डरना नहीं चाहिए। दीर्घायु के संकेतों में, जैसा कि अमेरिकी पत्रिका "रोकथाम" द्वारा सारांशित किया गया है, मजबूत पैर की मांसपेशिय...

बहुगुणा तुलसी :आप भी आज़माएँ

उपलब्ध सनातन भारतीय संस्कृति में विष्णु प्रिया तुलसी का जहां आध्यात्मिक महत्व है वहीँ तुलसी के औषधीय गुण भी अक्सर चर्चा में रहते हैं। इसकी एक ताज़ा झलक यहां प्रस्तुत है : विटामिन A ,D लौह तत्व आयरन के अलावा तुलसी जल  घुलने न घुलने वाले दोनों  प्रकार के खाद्य रेशों से लबालब है। आवश्यक खनिज लवणों एवं विटामिनों का एक समहू (एंटीऑक्सीडेंट्स )तुलसी में मौजूद हैं। एक और जहां पांच तुलसियों का सत आपके लिए बाज़ार में सहज सुलभ है वहीँ काढ़े की तरह ग्रीन टी की तरह आप घर में भी दो कप शुद्ध  जल में दो तीन मिनिट तुलसी को मंदी आंच पर उबाला दे छानकर  पी सकते हैं स्वादानुसार एक चम्मच शुद्ध शहद भी इस गुनगुने जल में मिलाकर आप इसे सुबह की चाय  का बढ़िया विकल्प बना सकते हैं।  कब्ज़ की बेहद आमफहम समस्या से निजात दिलवाएगा आपको ये घर में तैयार टॉनिक। पहले आज़माएँ फिर विश्वास करे।हाज़िम है यह सुबह का टॉनिक खाली पेट लेते रहें।  खून में थक्का बनने को मुल्तवी रखेगा ये तुलसी सार। उच्च रक्त चाप और परि-हृदय धमनी रोगों से ग्रस्त लोगों के लिए रामबाण साबित होगा।  शरीर से विष को निकाल बाहर...