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कहनी है एक बात हमें मज़लूमों और मुख्तारों से , सम्भल के रहना उन्नीस की सियासत के धंधे -मारों से।

कहनी है एक बात हमें  मज़लूमों और मुख्तारों  से ,

सम्भल के रहना उन्नीस की सियासत के धंधे -मारों से।

पाखंडी शिव भक्त  घूमते मंदिर और गुरद्वारों में ,

झाँक रहें हैं कई शिखंडी संसद की दीवारों से।

सावरकर और वीर सुभाष की याद करो कुर्बानी को ,

लक्ष्मी बाई  जूझ पड़ीं थीं कई देसी मक्कारों से।

उन्हीं के वंशज आज मुखर हैं ,भेष बदल फनकारों से।

सम्भल के रहना उन्नीस की सियासत के धंधे मारों से।

प्रस्तुति एवं सहभावी :वागीश मेहता नन्द लाल ,वीरू भाई 



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