Chinese Scientist Claims to Use Crispr to Make First Genetically Edited Babies
The researcher, He Jiankui, offered no evidence or data to back up his assertions. If true, some fear the feat could open the door to “designer babies.”
कह रहा है मौज़ -ए -दरिया से समुन्दर का सुकून जिस में जितना ज़र्फ़ है उतना ही वो खामोश है। कह रहा है शोर - ए-दरिया से समुन्दर का सुकूत , जिसका जितना ज़र्फ़ है उतना ही वो खामोश है । (नातिक़ लखनवी साहब ) The river's raging ........ मुस्तकिल बोलता ही रहा हूँ , हम लबों से कह न पाए उन से हाल -ए-दिल कभी , और वो समझे नहीं ये ख़ामशी क्या चीज़ है। शायरी :वो अपने ध्यान में बैठे अच्छे लगे हम को कह रहा है मौज -ए -दरिया से समन्दर का सुकून , जिस में जितना ज़र्फ़ है उतना ही वो खामोश है . "ख़ामोशी शायरी के उम्दा शैर " Search Results Web results Top 20 Famous Urdu sher of Khamoshi Shayari | Rekhta kah rahā hai shor-e-dariyā se samundar kā sukūt. jis kā jitnā zarf hai utnā hī vo ḳhāmosh hai. the river's raging ... mustaqil boltā hī rahtā huuñ ... ham laboñ se kah na paa.e un se hāl-e-dil kabhī. aur vo samjhe nahīñ ye ḳhāmushī kyā chiiz hai ... Tags: Famous sh
पेड़ से फल पकने के बाद स्वत : ही गिर जाता है डाल से अलग हो जाता है एक मनुष्य ही है जो पकी उम्र के बाद भी बच्चों के बच्चों से चिपका रहता है। इसे ही मोह कहते हैं। माया के कुनबे में लिपटा रहता है मनुष्य -मेरा बेटा मेरा पोता मेरे नाती आदि आदि से आबद्ध रहता है। ऐसे में आध्यात्मिक विकास के लिए अवकाश ही कहाँ रहता है लिहाज़ा : पुनरपि जन्मम पुनरपि मरणम , पुनरपि जननी जठरे शयनम। अनेकों जन्म बीत गए ट्रेफिक ब्रेक हुआ ही नहीं। क्या इसीलिए ये मनुष्य तन का चोला पहना था। आखिर तुम्हारा निज स्वरूप क्या है। ये सब नाते नाती रिश्ते तुम्हारे देह के संबंधी हैं तुम्हारे निज स्वरूप से इनका कोई लेना देना नहीं है। शरीर नहीं शरीर के मालिक शरीरी हो तुम। पहचानों अपने निज सच्चिदानंद स्वरूप को। अहम् ब्रह्मास्मि कबीर माया के इसी कुनबे पर कटाक्ष करते हुए कहते हैं :मनुष्य जब यह शरीर छोड़ देता है स्थूल तत्वों का संग्रह जब सूक्ष्म रूप पांच में तब्दील हो जाता है तब माँ जीवन भर संतान के लिए विलाप करती है उस संतान के लिए जो उसके जीते जी शरीर छोड़ जाए। बहना दस माह तक और स्त्री तेरह दिन तक। उसके
उद्धरेदात्मनात्मानं नात्मानमवसादयेत | आत्मैव ह्यात्मनो बन्धुरात्मैव रिपुरात्मन : || अपने द्वारा अपना उद्धार करें , अपना पतन न करें क्योंकि आप ही अपना मित्र हैं और आप ही अपना शत्रु हैं । व्याख्या :गुरु बनना या बनाना गीता का सिद्धांत नहीं है। वास्तव में मनुष्य आप ही अपना गुरु है। इसलिए अपने को ही उपदेश दे अर्थात दूसरे में कमी न देखकर अपने में ही कमी देखे और उसे मिटाने की चेष्टा करे। भगवान् भी विद्यमान हैं ,तत्व ज्ञान भी विद्यमान है और हम भी विद्यमान हैं ,फिर उद्धार में देरी क्यों ? नाशवान व्यक्ति ,पदार्थ और क्रिया में आसक्ति के कारण ही उद्धार में देरी हो रही है। इसे मिटाने की जिम्मेवारी हम पर ही है ; क्योंकि हमने ही आसक्ति की है। पूर्वपक्ष: गुरु ,संत और भगवान् भी तो मनुष्य का उद्धार करते हैं ,ऐसा लोक में देखा जाता है ? उत्तरपक्ष : गुरु ,संत और भगवान् भी मनुष्य का तभी उद्धार करते हैं ,जब वह (मनुष्य )स्वयं उन्हें स्वीकार करता है अर्थात उनपर श्रद्धा -विश्वास करता है ,उनके सम्मुख होता है ,उनकी शरण लेता है ,उनकी आज्ञा का पालन करता है। गुरु ,संत और भगवान् का कभी अभाव नह
टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें