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"ख़ामोशी शायरी के उम्दा शैर "कह रहा है मौज़ -ए -दरिया से समुन्दर का सुकून जिस में जितना ज़र्फ़ है उतना ही वो खामोश है।

कह रहा है मौज़ -ए -दरिया से समुन्दर का  सुकून

जिस में जितना ज़र्फ़ है उतना ही वो खामोश है।

कह रहा है शोर - ए-दरिया से समुन्दर का सुकूत ,

जिसका जितना ज़र्फ़ है उतना ही वो खामोश है ।

                                   (नातिक़  लखनवी साहब )

The river's raging ........

मुस्तकिल बोलता ही रहा  हूँ ,


हम लबों से कह न पाए उन से हाल -ए-दिल कभी ,

और वो समझे नहीं ये ख़ामशी क्या चीज़ है।

 शायरी :वो अपने ध्यान में बैठे अच्छे लगे हम को

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